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नज़र नीची है यार-ए-ख़ुश-नज़र की | शाही शायरी
nazar nichi hai yar-e-KHush-nazar ki

ग़ज़ल

नज़र नीची है यार-ए-ख़ुश-नज़र की

सिकंदर अली वज्द

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नज़र नीची है यार-ए-ख़ुश-नज़र की
करामत है ये मेरी चश्म-ए-तर की

मुबारक तुझ को ऐ सर्व-ए-ख़िरामाँ
जवानी धूप जैसे दोपहर की

उसी को लुत्फ़ आया ज़िंदगी का
जुनूँ में ज़िंदगी जिस ने बसर की

यहाँ पर्वाज़ के आदाब सीखो
असीरी तर्बियत है बाल-ओ-पर की

सफ़र कटता है अक्सर बे-ख़ुदी में
अदाएँ याद हैं इक हम-सफ़र की

ख़ुशा ऐ सोज़-ए-ग़म तेरी बदौलत
दुआओं पर इनायत है असर की

वो ख़ुश हैं 'वज्द' अर्ज़-ए-हाल कर ले
यहाँ फ़ुर्सत नहीं अर्ज़-ए-हुनर की