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नज़र नज़र में तमन्ना क़दम क़दम पे गुरेज़ | शाही शायरी
nazar nazar mein tamanna qadam qadam pe gurez

ग़ज़ल

नज़र नज़र में तमन्ना क़दम क़दम पे गुरेज़

इक़बाल माहिर

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नज़र नज़र में तमन्ना क़दम क़दम पे गुरेज़
जहाँ जहाँ भी मिले कोहकन वहीं परवेज़

घटा घटा सा धुँदलका है क़स्र-ओ-ऐवाँ में
निकल चलो जहाँ मैदाँ में रौशनी है तेज़

तिरे करम पे भी अंदेशा-हा-ए-दूर-ओ-दराज़
मिले हैं जाम-ओ-सुबू वो भी ज़हर से लबरेज़

नुमूद-ए-ख़ार-ए-मुग़ीलाँ है बाग़बाँ को पसंद
ज़मीन-ए-लाला-ओ-गुल वर्ना है बहुत ज़रख़ेज़

सुकूँ मिला है कनीज़ों को ख़्वाब-ए-शीरीं का
जो कोहकन ने सँभाली है दौलत-ए-परवेज़

तग़य्युरात-ए-ख़यालात इरतिक़ा-ए-हयात
तसादुम-ए-नज़रियात फ़ित्ना-ए-चंगेज़

गुज़र रहे हैं शब-ओ-रोज़ इस तरह 'माहिर'
न ज़िंदगी से मोहब्बत न ज़िंदगी से गुरेज़