नज़र-नवाज़ नज़ारों से बात करता हूँ
सुकूँ नसीब सहारों से बात करता हूँ
उलझ रहा है जो ख़ारों में फिर से ये दामन
ख़िज़ाँ ब-दोश बहारों से बात करता हूँ
तुम्हारे इश्क़ में तुम से जुदा जुदा रह कर
ग़म-ए-फ़िराक़ के मारों से बात करता हूँ
तिरे बग़ैर ये आलम अरे मआज़-अल्लाह
फ़लक के चाँद सितारों से बात करता हूँ
वुफ़ूर-ए-अश्क से ये हाल हो गया 'क़ैसर'
यम-ए-आलम के किनारों से बात करता हूँ
ग़ज़ल
नज़र-नवाज़ नज़ारों से बात करता हूँ
क़ैसर निज़ामी