नज़र मिली थी किसी बे-ख़बर से पहले भी
सदा-ए-तिश्ना उठी थी जिगर से पहले भी
ये सेहर कम है कि शादाब हो गया सहरा
बहे थे अश्क बहुत चश्म-ए-तर से पहले भी
नया नहीं है तक़ाज़ा-ए-शीशा-ओ-तेशा
गुज़र चुका हूँ मैं इस दर्द-ए-सर से पहले भी
मैं ख़ाक छानने वाला सवाद-ए-सहरा का
पड़े थे पाँव में छाले सफ़र से पहले भी
हिसार-ए-लफ़्ज़-ओ-बयाँ में न रह सका 'नामी'
कि आश्ना था मक़ाम-ए-हुनर से पहले भी

ग़ज़ल
नज़र मिली थी किसी बे-ख़बर से पहले भी
नामी अंसारी