नज़र मिलाते नहीं मुस्कुराए जाते हैं
बताओ यूँ भी कहीं दिल मिलाए जाते हैं
हुजूम-ए-जल्वा-ए-रंगीं का मुद्दआ' मा'लूम
हमारी ताब-ए-नज़र आज़माए जाते हैं
हिजाब हो मगर ऐसा भी क्या हिजाब आख़िर
झलक दिखाते नहीं मुँह छुपाए जाते हैं
हुदूद-ए-कूचा-ए-जानाँ में आ गए शायद
क़दम क़दम पे क़दम डगमगाए जाते हैं
ये किस का ज़िक्र है ऐ 'ताज' लब पे शाम-ओ-सहर
ये किस कि याद में आँसू बहाए जाते हैं

ग़ज़ल
नज़र मिलाते नहीं मुस्कुराए जाते हैं
रियासत अली ताज