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नज़र मिलाते नहीं मुस्कुराए जाते हैं | शाही शायरी
nazar milate nahin muskurae jate hain

ग़ज़ल

नज़र मिलाते नहीं मुस्कुराए जाते हैं

रियासत अली ताज

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नज़र मिलाते नहीं मुस्कुराए जाते हैं
बताओ यूँ भी कहीं दिल मिलाए जाते हैं

हुजूम-ए-जल्वा-ए-रंगीं का मुद्दआ' मा'लूम
हमारी ताब-ए-नज़र आज़माए जाते हैं

हिजाब हो मगर ऐसा भी क्या हिजाब आख़िर
झलक दिखाते नहीं मुँह छुपाए जाते हैं

हुदूद-ए-कूचा-ए-जानाँ में आ गए शायद
क़दम क़दम पे क़दम डगमगाए जाते हैं

ये किस का ज़िक्र है ऐ 'ताज' लब पे शाम-ओ-सहर
ये किस कि याद में आँसू बहाए जाते हैं