नज़र मिला के नज़र से गिरा दिया तुम ने
मुझे बताओ ख़ुदारा ये क्या क्या तुम ने
मुझी पे वार किया और मुझी को भूल गए
मिरी वफ़ा का ये अच्छा सिला दिया तुम ने
न अपने तर्ज़-ए-सितम पर निगाह की तुम ने
हमारी बात को इतना बढ़ा दिया तुम ने
तुम आ के क्या मुतबस्सिम हुए लहद पर मिरी
चराग़-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ जला दिया तुम ने
हमें तो होश नहीं तुम को इल्म होगा ज़रूर
कि किस क़ुसूर पे दिल से भुला दिया तुम ने
किसी के जौर का 'तसनीम' ये फ़साना है
कि जिस को नज़्म बना कर सुना दिया तुम ने

ग़ज़ल
नज़र मिला के नज़र से गिरा दिया तुम ने
जमीला ख़ातून तस्नीम