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नज़र में धूल फ़ज़ा में ग़ुबार चारों तरफ़ | शाही शायरी
nazar mein dhul faza mein ghubar chaaron taraf

ग़ज़ल

नज़र में धूल फ़ज़ा में ग़ुबार चारों तरफ़

राशिद अनवर राशिद

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नज़र में धूल फ़ज़ा में ग़ुबार चारों तरफ़
ज़रूर फैलेगा अब इंतिशार चारों तरफ़

तुझे भी वादी-ए-हू ने क़ुबूल कर ही लिया
अब अपने आप को फिर से पुकार चारों तरफ़

चले भी आओ कहीं कुछ गुमाँ तो बाक़ी रहे
कि ढल रही है शब-ए-इंतिज़ार चारों तरफ़

समझ न पाया कोई दर्द बिखरे लम्हों का
ये शाम फिर से हुई अश्क-बार चारों तरफ़

तू अब की बार न बच कर निकलने पाएगा
सफ़र में देख तिलिस्मी हिसार चारों तरफ़

यहाँ बहिश्त से आई है एक सब्ज़ परी
इसी लिए है फ़ज़ा में निखार चारों तरफ़