नज़्अ' की सख़्ती बढ़ी उन को पशेमाँ देख कर
मौत मुश्किल हो गई जीने का सामाँ देख कर
वो कभी जब इल्तिफ़ात-ए-नाज़ से लेते हैं काम
काँप जाता हूँ मैं अपने दिल के अरमाँ देख कर
करते हैं अर्बाब-ए-दिल अंदाज़ा-ए-जोश-ए-बहार
मेरा दामन देख कर मेरा गरेबाँ देख कर
वो न अगला बाग़बाँ है अब न अगले हम-सफ़ीर
याद करता हूँ क़फ़स को मैं गुलिस्ताँ देख कर
अल्लाह अल्लाह मुझ सा आसी दर्ख़ुर-ए-रहमत हुआ
रश्क-ए-ज़ाहिद तो भी है ये क़द्र-ए-इस्याँ देख कर
ऐ बुत-ए-काफ़िर मआ'ज़-अल्लाह ये तेरा शबाब
कोई काफ़िर ही रहेगा अब मुसलमाँ देख कर
इन बुतों ने मुझ को बे-ख़ुद किस क़दर धोके दिए
सीधा-सादा जान कर मर्द-ए-मुसलमाँ देख कर
ग़ज़ल
नज़्अ' की सख़्ती बढ़ी उन को पशेमाँ देख कर
अब्बास अली ख़ान बेखुद