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नया रौशन सहीफ़ा दिख रहा नईं | शाही शायरी
naya raushan sahifa dikh raha nain

ग़ज़ल

नया रौशन सहीफ़ा दिख रहा नईं

साजिद हमीद

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नया रौशन सहीफ़ा दिख रहा नईं
ख़जिस्ता कोई लहजा दुख रहा नईं

तिरी सरगोशियों का नर्म साया
लगाया ज़ोर सारा दिख रहा नईं

यहीं रक्खा था ख़्वाबों के किनारे
तिरा अनमोल तोहफ़ा दिख रहा नईं

दबा कर दिल में जो रक्खा था शो'ला
बहुत मैं ने कुरेदा दिख रहा नईं

थकन नज़रों पे तारी हो रही है
न जाने क्यूँ वो चेहरा दिख रहा नईं

घने जो पेड़ थे सब कट गए क्या
कहाँ है बहता दरिया दिख रहा नईं

जिसे छू कर घटा गाने लगी थी
फ़लक पर वो सितारा दिख रहा नईं

अलमिया ये नहीं तो क्या है 'साजिद'
जो था हम-ज़ाद मेरा दिख रहा नईं