नवाह-ए-दिल में ये मेरी मिसाल जलते रहें
ख़स-ओ-गुलाब नबात-ओ-निहाल जलते रहें
कभी न सर्द पड़े गर्मी-ए-नशात-ए-नफ़स
तमाम पैकर-ए-फ़िक्र-ओ-ख़याल जलते रहें
ये जब्र-ए-वक़्त है कैसा कि उस की याद के चाँद
उगें तो फिर सर-ए-शाख़-ए-मलाल जलते रहें
हवा-ए-हिज्र अभी तक है महव-ए-ख़्वाब कहीं
फ़सील-ए-जाँ पे चराग़-ए-विसाल जलते रहें
यूँही रिवायत-ए-तीर-ओ-कमाँ रहे रौशन
नुक़ूश-ए-वहशत-ए-पा-ए-ग़ज़ाल जलते रहें
लगे तो क़स्र-ए-शब-ओ-रोज़ में भी आग लगे
जलें तो सदियों तलक माह-ओ-साल जलते रहें
हम उस की राह में रौशन किए गए हैं सो 'रम्ज़'
करें न उस से कोई अर्ज़-ए-हाल जलते रहें
ग़ज़ल
नवाह-ए-दिल में ये मेरी मिसाल जलते रहें
मोहम्मद अहमद रम्ज़