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नतीजा देखिए कुछ दिन में क्या से क्या निकल आया | शाही शायरी
natija dekhiye kuchh din mein kya se kya nikal aaya

ग़ज़ल

नतीजा देखिए कुछ दिन में क्या से क्या निकल आया

नवाज़ असीमी

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नतीजा देखिए कुछ दिन में क्या से क्या निकल आया
कहीं पे बीज बोया था कहीं पौधा निकल आया

रक़म है जिस पे मेरे आबा-ओ-अज्दाद का शजरा
मिरे घर की खुदाई में वही कतबा निकल आया

सुना है आज सब उर्यां नज़र आएँगे सड़कों पर
मैं अपने घर से बन कर आज ना-बीना निकल आया

कुछ ऐसे ज़ाविए से आज सूरज ने हुकूमत की
के मेरे जिस्म के साये का भी साया निकल आया

असा जब हज़रत-ए-मूसा ने मारा बहते पानी पर
तो पानी फट गया और सामने रस्ता निकल आया

ऐ सपनों के परिंदों हिजरतों से रोक लो ख़ुद को
मिरी आँखों के रेगिस्तान में चश्मा निकल आया

तिरी नज़रों के औज़ारों ने मेरे जिस्म-ए-ख़ाकी का
जिगर खोदा तो टूटे दिल का कुछ मलबा निकल आया

तू वो कम-ज़र्फ़ जो हर दर पे दामन को पसारे है
मैं वो ख़ुद्दार जो दरिया से भी प्यासा निकल आया