नसीम है तिरे कूचे में और सबा भी है
हमारी ख़ाक से देखो तो कुछ रहा भी है
तिरा ग़ुरूर मिरा इज्ज़ ता कुजा ज़ालिम
हर एक बात की आख़िर कुछ इंतिहा भी है
जले है शम्अ से परवाना और मैं तुझ से
कहीं है मेहर भी जग में कहीं वफ़ा भी है
ख़याल अपने में गो हूँ तराना-संजाँ मस्त
कराहने के दिलों को कभी सुना भी है
ज़बान-ए-शिकवा सिवा अब ज़माने में हैहात
कोई किसू से बहम दीगर आश्ना भी है
सितम रवा है असीरों पे इस क़दर सय्याद
चमन चमन कहीं बुलबुल की अब नवा भी है
समझ के रखियो क़दम ख़ार-ए-दश्त पर मजनूँ
कि इस नवाह में 'सौदा' बरहना-पा भी है
ग़ज़ल
नसीम है तिरे कूचे में और सबा भी है
मोहम्मद रफ़ी सौदा