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नसीबों से कोई गर मिल गया है | शाही शायरी
nasibon se koi gar mil gaya hai

ग़ज़ल

नसीबों से कोई गर मिल गया है

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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नसीबों से कोई गर मिल गया है
तो पहले उस पे अपना दिल गया है

करेगा याद क्या क़ातिल को अपने
तड़पता याँ से जो बिस्मिल गया है

लगे हैं ज़ख़्म किस की तेग़ के ये
कि जैसे फूट सीना खुल गया है

ख़ुदा के वास्ते उस को न लाओ
अभी तो याँ से वो क़ातिल गया है

कोई मजनूँ से टुक झूटे ही कह दे
कि लैला का अभी महमिल गया है

अगर टुक की है हम ने जुम्बिश उस को
पहाड़ अपनी जगह से हिल गया है

कोई ऐ 'मुसहफ़ी' उस से ये कह दे
दुआ देता तुझे साइल गया है