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नसीब दर पे तिरे आज़माने आया हूँ | शाही शायरी
nasib dar pe tere aazmane aaya hun

ग़ज़ल

नसीब दर पे तिरे आज़माने आया हूँ

शकील बदायुनी

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नसीब दर पे तिरे आज़माने आया हूँ
तुझी को तेरी कहानी सुनाने आया हूँ

जो नग़्मे सोए हुए हैं तिरे ख़यालों में
उन्हीं को आज में गा कर सुनाने आया हूँ

बहा भी दे मिरी हालत पे आज दो आँसू
मैं अपने दिल की लगी को बुझाने आया हूँ

अगर वो सामने होते तो उन से ये कहता
तिरे हुज़ूर मैं बिगड़ी बनाने आया हूँ