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नश्शे में जी चाहता है बोसा-बाज़ी कीजिए | शाही शायरी
nashshe mein ji chahta hai bosa-bazi kijiye

ग़ज़ल

नश्शे में जी चाहता है बोसा-बाज़ी कीजिए

मीर मोहम्मदी बेदार

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नश्शे में जी चाहता है बोसा-बाज़ी कीजिए
इतनी रुख़्सत दीजिए बंदा-नवाज़ी कीजिए

चाहिए जो कुछ सो हो पहले ही सज्दे में हुसूल
आप को गर काबा-ए-दिल का नमाज़ी कीजिए

जिस ने इक जल्वा को देखा जी दिया परवाना-वार
इस क़दर ऐ शम्अ-रूयाँ हुस्न-साज़ी कीजिए

नर्दबाँ कहते हैं है बाम-ए-हक़ीक़त का मजाज़
चंद रोज़ इस वास्ते इश्क़-ए-मजाज़ी कीजिए

ख़्वाहिश-ए-रौशन-दिली गर होवे शब से ता-सहर
शम्अ-साँ 'बेदार' रो रो जाँ-गुदाज़ी कीजिए