नश्शे में जी चाहता है बोसा-बाज़ी कीजिए
इतनी रुख़्सत दीजिए बंदा-नवाज़ी कीजिए
चाहिए जो कुछ सो हो पहले ही सज्दे में हुसूल
आप को गर काबा-ए-दिल का नमाज़ी कीजिए
जिस ने इक जल्वा को देखा जी दिया परवाना-वार
इस क़दर ऐ शम्अ-रूयाँ हुस्न-साज़ी कीजिए
नर्दबाँ कहते हैं है बाम-ए-हक़ीक़त का मजाज़
चंद रोज़ इस वास्ते इश्क़-ए-मजाज़ी कीजिए
ख़्वाहिश-ए-रौशन-दिली गर होवे शब से ता-सहर
शम्अ-साँ 'बेदार' रो रो जाँ-गुदाज़ी कीजिए
ग़ज़ल
नश्शे में जी चाहता है बोसा-बाज़ी कीजिए
मीर मोहम्मदी बेदार