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नशे की आग में देखा गुलाब या'नी तू | शाही शायरी
nashe ki aag mein dekha gulab yani tu

ग़ज़ल

नशे की आग में देखा गुलाब या'नी तू

महशर आफ़रीदी

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नशे की आग में देखा गुलाब या'नी तू
बदन के जाम में देसी शराब या'नी तू

हमारे लम्स ने सब तार कस दिए उस के
वो झनझनाने को बेकल रबाब या'नी तू

हर एक चेहरा नज़र से चखा हुआ देखा
हर इक नज़र से अछूता शबाब या'नी तू

सफ़ेद क़लमें हुईं तो सियह-ज़ुल्फ़ मिली
अब ऐसी उम्र में ये इंक़लाब या'नी तू

मय ख़ुद ही अपनी निगाहों कि दाद देता हूँ
हज़र चेहरों में इक इंतिख़ाब या'नी तू

मिले मिले न मिले नेकियों का फल मुझ को
ख़ुदा ने दे दिया मुझ को सवाब या'नी तू

गुदाज़ जिस्म कमल होंट मर्मरी बाहें
मिरी तबीअ'त पे लिक्खी किताब या'नी तू

मैं तेरे इश्क़ से पहले गुनाह करता था
मुझे दिया गया दिलकश अज़ाब या'नी तू