नक़्श की तरह उभरना भी तुम्ही से सीखा
रफ़्ता रफ़्ता नज़र आना भी तुम्ही से सीखा
तुम से हासिल हुआ इक गहरे समुंदर का सुकूत
और हर मौज से लड़ना भी तुम्ही से सीखा
अच्छे शेरों की परख तुम ने ही सिखलाई मुझे
अपने अंदाज़ से कहना भी तुम्ही से सीखा
तुम ने समझाए मिरी सोच को आदाब अदब
लफ़्ज़ ओ मअनी से उलझना भी तुम्ही से सीखा
रिश्ता-ए-नाज़ को जाना भी तो तुम से जाना
जामा-ए-फ़ख़्र पहनना भी तुम्ही से सीखा
छोटी सी बात पे ख़ुश होना मुझे आता था
पर बड़ी बात पे चुप रहना तुम्ही से सीखा
ग़ज़ल
नक़्श की तरह उभरना भी तुम्ही से सीखा
ज़ेहरा निगाह