नक़्श जब भी तिरा उभारा है 
ख़्वाब ने ख़्वाब को सँवारा है 
तेरी चाहत तिरी वफ़ाओं का 
क़र्ज़ हम ने कहाँ उतारा है 
मेरे जीवन का आसमाँ है तू 
मेरी क़िस्मत का तू सितारा है 
मेरी नाव की तू ही मंज़िल है 
मेरे दरिया का तू किनारा है 
चल पड़ेंगे 'ओवैस' जी हम भी 
बादबाँ का अगर इशारा है
        ग़ज़ल
नक़्श जब भी तिरा उभारा है
ओवैस उल हसन खान

