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नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का | शाही शायरी
naqsh fariyaadi hai kis ki shoKHi-e-tahrir ka

ग़ज़ल

नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का

मिर्ज़ा ग़ालिब

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नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का
काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का

For favours from whose playful hand, does the word aspire
Each one's an abject supplicant in paper-like attire

काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ
सुब्ह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर का

What constant pain this loneliness you may not believe
Like from mountains drawing milk, is passing morn to eve

जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिए
सीना-ए-शमशीर से बाहर है दम शमशीर का

The spirit of love's frenzied state is worth, truly, seeing
As though sharpness of the sword exists outside its being

आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए
मुद्दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का

Awareness may well cast its net of knowing all around
What I speak is like a phoenix, unknowable, profound

बस-कि हूँ 'ग़ालिब' असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा
मू-ए-आतिश दीदा है हल्क़ा मिरी ज़ंजीर का

Even in bondage, passion's so, there's fire neath my feet
The chains that hold me are as though,hair singed by fire's heat

आतिशीं-पा हूँ गुदाज़-ए-वहशत-ए-ज़िन्दाँ न पूछ
मू-ए-आतिश दीदा है हर हल्क़ा याँ ज़ंजीर का

शोख़ी-ए-नैरंग सैद-ए-वहशत-ए-ताऊस है
दाम-ए-सब्ज़ा में है परवाज़-ए-चमन तस्ख़ीर का

लज़्ज़त-ए-ईजाद-ए-नाज़ अफ़सून-ए-अर्ज़-ज़ौक़-ए-क़त्ल
न'अल आतिश में है तेग़-ए-यार से नख़चीर का

ख़िश्त पुश्त-ए-दस्त-ए-इज्ज़ ओ क़ालिब आग़ोश-ए-विदा'अ
पुर हुआ है सैल से पैमाना किस ता'मीर का

वहशत-ए-ख़्वाब-ए-अदम शोर-ए-तमाशा है 'असद'
जो मज़ा जौहर नहीं आईना-ए-ताबीर का