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नक़्श-ए-कुहन सब दिल के मिटाओ | शाही शायरी
naqsh-e-kuhan sab dil ke miTao

ग़ज़ल

नक़्श-ए-कुहन सब दिल के मिटाओ

हसीब रहबर

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नक़्श-ए-कुहन सब दिल के मिटाओ
फिर कोई तस्वीर बनाओ

बस्ती बस्ती ख़ून-ख़राबा
अक़्ल के मारो होश में आओ

पत्थर बन कर जीना क्या
फूलों की टहनी बन जाओ

मसनूई किरदार के लोगो
सच्चाई के रूप दिखाओ

रात अँधेरी सर पर तूफ़ाँ
सोच समझ कर क़दम बढ़ाओ

अपनों को तुम छोड़ के 'रहबर'
कहाँ चले ये राज़ बताओ