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नक़्श डरेगा जंगल में | शाही शायरी
naqsh Darega jangal mein

ग़ज़ल

नक़्श डरेगा जंगल में

साहिल अहमद

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नक़्श डरेगा जंगल में
साँप मिलेगा जंगल में

वहशी जलती उँगली से
पेड़ गिनेगा जंगल में

टूट के साया पेड़ों से
रक़्स करेगा जंगल में

ख़ुद-रौ पौदे आँसू के
फूल खिलेगा जंगल में

चलता-फिरता साया भी
अब न मिलेगा जंगल में

शेर गुफा से निकलेगा
शोर मचेगा जंगल में

नख़्ल-ए-मुरव्वत कटते ही
शहर उगेगा जंगल में

बैर न करना मिट्टी से
क़र्ज़ उगेगा जंगल में

बूढ़ा तोता किस किस को
याद करेगा जंगल में