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नक़्श आख़िर आप अपना हादिसा हो जाएगा | शाही शायरी
naqsh aaKHir aap apna hadisa ho jaega

ग़ज़ल

नक़्श आख़िर आप अपना हादिसा हो जाएगा

फ़ारूक़ मुज़्तर

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नक़्श आख़िर आप अपना हादिसा हो जाएगा
और तय वहम-ओ-यक़ीं का मरहला हो जाएगा

गूँज उट्ठेंगे दर-ओ-दीवार अपने कर्ब से
लफ़्ज़ जो तिश्ना है मअ'नी-आश्ना हो जाएगा

जिस्म भी पिघलेंगे साए भी न ठहरेंगे कहीं
जाने कब ये सब्ज़ मंज़र भी हवा हो जाएगा

लोग सब उस की कहानी जान लेंगे हर्फ़ हर्फ़
और वो ख़ुश-पोश खुल कर बे-रिदा हो जाएगा

पेड़ उगलेंगे स्याही का समुंदर देखना
मौसम-ए-ख़ुश-रंग 'मुज़्तर' ज़ख़्म-ए-पा हो जाएगा