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नमकीं हर्फ़ है मिरा ये फ़सीह | शाही शायरी
namkin harf hai mera ye fasih

ग़ज़ल

नमकीं हर्फ़ है मिरा ये फ़सीह

ताबाँ अब्दुल हई

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नमकीं हर्फ़ है मिरा ये फ़सीह
कुल्लो शैइन मिनल-मलीह मलीह

व क़िना रब्बना अज़ाबन्नार
शम्अ' की है हमेशा ये तस्बीह

लमिनल-मा कुल्लो शैइन हय
शर्ब-ए-मय से हुआ है मुझ को सहीह

मिस्लहू लैसा वाहिदुन ग़र्रा
माह-ए-कनआँ भी था अगरचे फ़सीह

जी में आवे सो कह तू 'ताबाँ' को
लैसा मिन फ़ीका शतमना बे-क़बीह