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नमी आँखों की बादा हो गई है | शाही शायरी
nami aankhon ki baada ho gai hai

ग़ज़ल

नमी आँखों की बादा हो गई है

तारिक़ राशीद दरवेश

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नमी आँखों की बादा हो गई है
पुरानी याद ताज़ा हो गई है

है मुझ को ए'तिराफ़-ए-जुर्म-ए-उल्फ़त
ख़ता ये बे-इरादा हो गई है

चले आओ हुजूम-ए-शौक़ ले कर
रह-ए-दिल अब कुशादा हो गई है

गुमाँ होने लगा है हर यक़ीं पर
तिरी हर बात वअ'दा हो गई है

मिले हो जब भी तन्हाई में 'दरवेश'
कोई तक़रीब-ए-सादा हो गई है