नम आँखों में क्या कर लेगा ग़ुस्सा देखेंगे
ओस के ऊपर चिंगारी का लहजा देखेंगे
शीशे के बाज़ार से ले आएँगे कुछ चेहरे
वही पहन कर हम घर का भी शीशा देखेंगे
कितनी दूर तलक जाएगी ज़ब्त की ये कश्ती
कितना गहरा है इस दर्द का दरिया देखेंगे
दरिया के पीछे पीछे हम सहरा तक आए
किस मंज़िल को ले जाए अब सहरा देखेंगे
रूठने वाली ख़त पढ़ कर फ़ौरन ही लौट आईं
हम ने लिखा था सेल लगी है कपड़ा देखेंगे
कुछ दिन में दिल का खो जाना बिल्कुल मुमकिन है
कहता है हम बड़े हुए अब दुनिया देखेंगे
ग़ज़ल
नम आँखों में क्या कर लेगा ग़ुस्सा देखेंगे
विजय शर्मा अर्श