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नहीं उड़ाऊँगा ख़ाक रोया नहीं करूँगा | शाही शायरी
nahin uDaunga KHak roya nahin karunga

ग़ज़ल

नहीं उड़ाऊँगा ख़ाक रोया नहीं करूँगा

तैमूर हसन

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नहीं उड़ाऊँगा ख़ाक रोया नहीं करूँगा
करूँगा मैं इश्क़ पर तमाशा नहीं करूँगा

मिरी मोहब्बत भी ख़ास है क्यूँकि ख़ास हूँ मैं
सो आम लोगों में ज़िक्र इस का नहीं करूँगा

उसे बताओ फ़रार का नाम तो नहीं इश्क़
जो कह रहा है मैं कार-ए-दुनिया नहीं करूँगा

कभी न सोचा था गुफ़्तुगू भी करूँगा घंटों
और अपनी बातों में ज़िक्र तेरा नहीं करूँगा

इरादतन जो किया है अब तक ग़लत किया है
सो अब कोई काम बिल-इरादा नहीं करूँगा

तुझे मैं अपना नहीं समझता इसी लिए तो
ज़माने तुझ से मैं कोई शिकवा नहीं करूँगा

मिरी तवज्जोह फ़क़त मिरे काम पर रहेगी
मैं ख़ुद को साबित करूँगा दावा नहीं करूँगा

अगर मैं हारा तो मान लूँगा शिकस्त अपनी
तिरी तरह से कोई बहाना नहीं करूँगा

अगर किसी मस्लहत में पीछे हटा हूँ 'तैमूर'
तो मत समझना कि अब मैं हमला नहीं करूँगा