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नहीं रहेगा हमेशा ग़ुबार मेरे लिए | शाही शायरी
nahin rahega hamesha ghubar mere liye

ग़ज़ल

नहीं रहेगा हमेशा ग़ुबार मेरे लिए

सुरेन्द्र शजर

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नहीं रहेगा हमेशा ग़ुबार मेरे लिए
खिलेंगे फूल सर-ए-रहगुज़ार मेरे लिए

कभी तो होगी किसी को मिरी कमी महसूस
कभी तो होगा कोई सोगवार मेरे लिए

तरस गए थे मिरे लब हँसी को जिस के सबब
हुआ है आज वही अश्क-बार मेरे लिए

वो मेरे क़ुर्ब से महरूम ही रहे शायद
वो मुंतज़िर है समुंदर के पार मेरे लिए

मिरी तलाश में होगा मिरा नसीब कभी
वो वक़्त लाएगा पर्वरदिगार मेरे लिए