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नहीं निबाही ख़ुशी से ग़मी को छोड़ दिया | शाही शायरी
nahin nibahi KHushi se ghami ko chhoD diya

ग़ज़ल

नहीं निबाही ख़ुशी से ग़मी को छोड़ दिया

जौन एलिया

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नहीं निबाही ख़ुशी से ग़मी को छोड़ दिया
तुम्हारे बा'द भी मैं ने कई को छोड़ दिया

हों जो भी जान की जाँ वो गुमान होते हैं
सभी थे जान की जाँ और सभी को छोड़ दिया

शुऊ'र एक शुऊ'र-ए-फ़रेब है सो तो है
ग़रज़ कि आगही ना-आगही को छोड़ दिया

ख़याल-ओ-ख़्वाब की अंदेशगी के सुख झेले
ख़याल-ओ-ख़्वाब की अंदेशगी को छोड़ दिया