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नहीं मालूम ये क्या कर चुके हैं | शाही शायरी
nahin malum ye kya kar chuke hain

ग़ज़ल

नहीं मालूम ये क्या कर चुके हैं

इनाम नदीम

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नहीं मालूम ये क्या कर चुके हैं
हम अपने दिल से धोका कर चुके हैं

ज़रा कार-ए-जहाँ भी कर के देखें
बहुत कार-ए-तमन्ना कर चुके हैं

कोई पत्थर ही आए अब कहीं से
हम अपने दिल को शीशा कर चुके हैं

ज़माना है बुरे हम-साए जैसा
सो हम-साए से झगड़ा कर चुके हैं

समेटेगा कोई कैसे जो पत्ते
बिखरने का तहय्या कर चुके हैं

बहुत शफ़्फ़ाफ़ था बादल का दामन
जिसे हम लोग मैला कर चुके हैं

वो दिल जिस ने हमें रुस्वा किया था
हम आज उस दिल को रुस्वा कर चुके हैं