नहीं कि नामा-बरों को तलाश करते हैं
हम अपने बे-ख़बरों को तलाश करते हैं
मोहब्बतों का भी मौसम है जब गुज़र जाए
सब अपने अपने घरों को तलाश करते हैं
सुना है कल जिन्हें दस्तार-ए-इफ़्तिख़ार मिली
वो आज अपने सरों को तलाश करते हैं
ये इश्क़ क्या है कि इज़हार-ए-आरज़ू के लिए
हरीफ़ नौहागरों को तलाश करते हैं
ये हम जो ढूँडते फिरते हैं क़त्ल-गाहों को
दर-अस्ल चारागरों को तलाश करते हैं
रिहा हुए प अजब हाल है असीरों का
कि अब वो अपने परों को तलाश करते हैं
'फ़राज़' दाद के क़ाबिल है जुस्तुजू उन की
जो हम से दर-बदरों को तलाश करते हैं
ग़ज़ल
नहीं कि नामा-बरों को तलाश करते हैं
अहमद फ़राज़