नहीं बंद-ए-क़बा में तन हमारा
है उर्यानी ही पैराहन हमारा
रखें अपने तईं हम किस तरह दोस्त
हो तुझ सा शख़्स जब दुश्मन हमारा
हैं ये काहीदा हम ग़म से कि जूँ शम्अ
है एक अब जेब और दामन हमारा
नज़र में काबा क्या ठहरे कि याँ दैर
रहा है मुद्दतों मस्कन हमारा
चमन में गर है तू बुलबुल तो मिन-ब'अद
हैं हम और गोशा-ए-गुलख़न हमारा
बहार-ए-दाग़ थी जब दिल पे 'क़ाएम'
अजब सरसब्ज़ था गुलशन हमारा
ग़ज़ल
नहीं बंद-ए-क़बा में तन हमारा
क़ाएम चाँदपुरी