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नहीं आसमाँ तिरी चाल में नहीं आऊँगा | शाही शायरी
nahin aasman teri chaal mein nahin aaunga

ग़ज़ल

नहीं आसमाँ तिरी चाल में नहीं आऊँगा

अहमद महफ़ूज़

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नहीं आसमाँ तिरी चाल में नहीं आऊँगा
मैं पलट के अब किसी हाल में नहीं आऊँगा

मिरी इब्तिदा मिरी इंतिहा कहीं और है
मैं शुमारा-ए-माह-ओ-साल में नहीं आऊँगा

अभी इक अज़ाब से है सफ़र इक अज़ाब तक
अभी रंग-ए-शाम-ए-ज़वाल में नहीं आऊँगा

वही हालतें वही सूरतें हैं निगाह में
किसी और सूरत-ए-हाल में नहीं आऊँगा

मुझे क़ैद करने की ज़हमतें न उठाइए
नहीं आऊँगा किसी जाल में नहीं आऊँगा

मैं ख़याल-ओ-ख़्वाब हिसार से भी निकल चुका
सो किसी के ख़्वाब-ओ-ख़याल में नहीं आऊँगा

न हो बद-गुमाँ मिरी दाद-ख़्वाही-ए-हिज्र से
मिरी जाँ मैं शौक़-ए-विसाल में नहीं आऊँगा