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नग़्मा-ए-इश्क़ सुनाता हूँ मैं इस शान के साथ | शाही शायरी
naghma-e-ishq sunata hun main is shan ke sath

ग़ज़ल

नग़्मा-ए-इश्क़ सुनाता हूँ मैं इस शान के साथ

शकील बदायुनी

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नग़्मा-ए-इश्क़ सुनाता हूँ मैं इस शान के साथ
रक़्स करता है ज़माना मिरे विज्दान के साथ

है मिरा ज़ौक़-ए-जुनूँ कुफ्र-ओ-ख़िरद की ज़द में
ऐ ख़ुदा अब तो उठा ले मुझे ईमान के साथ

दिल बना दोस्त तो क्या क्या न सितम उस ने किए
हम भी नादाँ थे निभाते रहे नादान के साथ

दाग़ माथे पे चले शैख़-ओ-बरहमन ले कर
आए थे दैर-ओ-हरम तक बड़े अरमान के साथ

ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-हस्ती ग़म-ए-हालात 'शकील'
क्या कहूँ कितनी बलाएँ हैं मिरी जान के साथ