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नफ़रत के साथ प्यार की मीठी तरंग है | शाही शायरी
nafrat ke sath pyar ki miThi tarang hai

ग़ज़ल

नफ़रत के साथ प्यार की मीठी तरंग है

क़ाज़ी हसन रज़ा

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नफ़रत के साथ प्यार की मीठी तरंग है
माँझा है काट-दार रंगीली पतंग है

सूरज की इक किरन को तरसता है लफ़्ज़ लफ़्ज़
मेरी ग़ज़ल के चेहरे पे रातों का रंग है

ज़र्रे की आब-ओ-ताब का पेचीदा कारोबार
जिस की झलक को देख के सूरज भी तंग है

मेरे ख़ुलूस के लिए उस में जगह कहाँ
दिल उस का क़ब्र की तरह तारीक-ओ-तंग है

होती है किस की जीत 'रज़ा' देखते रहो
मौज-ए-ग़ज़ब की आज किनारे से जंग है