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नफ़स नफ़स को हवा की रिकाब में रखना | शाही शायरी
nafas nafas ko hawa ki rikab mein rakhna

ग़ज़ल

नफ़स नफ़स को हवा की रिकाब में रखना

मुबारक अंसारी

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नफ़स नफ़स को हवा की रिकाब में रखना
वजूद अपना कफ़-ए-आफ़्ताब में रखना

ग़रीब-ए-शहर तुझे तिश्नगी न ले डूबे
सँभल के अपना क़दम दश्त-ए-आब में रखना

ये वो गुलाब हैं जो धूप सह नहीं सकते
उन्हें हमेशा शब-ए-माहताब में रखना

कि जिन का चश्म-ए-नज़ारा तवाफ़ करने लगे
कुछ ऐसे नक़्श भी दीवार-ए-ख़्वाब में रखना

वो ख़्वाह फूल हो महताब हो कि साग़र हो
कोई भी शय हो न उस के जवाब में रखना

हसीन लफ़्ज़ों की सूरत हैं ख़द्द-ओ-ख़ाल उस के
'मुबारक' उन को भी अपनी किताब में रखना