नफ़स नफ़स को हवा की रिकाब में रखना
वजूद अपना कफ़-ए-आफ़्ताब में रखना
ग़रीब-ए-शहर तुझे तिश्नगी न ले डूबे
सँभल के अपना क़दम दश्त-ए-आब में रखना
ये वो गुलाब हैं जो धूप सह नहीं सकते
उन्हें हमेशा शब-ए-माहताब में रखना
कि जिन का चश्म-ए-नज़ारा तवाफ़ करने लगे
कुछ ऐसे नक़्श भी दीवार-ए-ख़्वाब में रखना
वो ख़्वाह फूल हो महताब हो कि साग़र हो
कोई भी शय हो न उस के जवाब में रखना
हसीन लफ़्ज़ों की सूरत हैं ख़द्द-ओ-ख़ाल उस के
'मुबारक' उन को भी अपनी किताब में रखना
ग़ज़ल
नफ़स नफ़स को हवा की रिकाब में रखना
मुबारक अंसारी