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नए मौसम को क्या होने लगा है | शाही शायरी
nae mausam ko kya hone laga hai

ग़ज़ल

नए मौसम को क्या होने लगा है

जमील मुरस्सापुरी

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नए मौसम को क्या होने लगा है
कि मिट्टी में लहू बोने लगा है

कोई क़ीमत नहीं थी जिस की यारो
अब उस का मोल भी होने लगा है

बहुत मुश्किल है अब उस को जगाना
वो आँखें खोल कर सोने लगा है

जहाँ होता नहीं था कुछ भी कल तक
वहाँ भी कुछ न कुछ होने लगा है

हवा का क़द कोई किस तरह नापे
जिसे देखो वही कोने लगा है

अभी तो पाँव में काँटे चुभे हैं
अभी से हौसला खोने लगा है

नई तहज़ीब दम तोड़ेगी इक दिन
नहीं होना था जो होने लगा है