EN اردو
नए जहाँ में पुरानी शराब ले आए | शाही शायरी
nae jahan mein purani sharab le aae

ग़ज़ल

नए जहाँ में पुरानी शराब ले आए

फ़ितरत अंसारी

;

नए जहाँ में पुरानी शराब ले आए
अँधेरी रात में हम आफ़्ताब ले आए

मिरे यक़ीन में गुंजाइश-ए-दलील नहीं
जवाज़ ढूँडने वाले किताब ले आए

पड़े थे एक ही आलम में अहल-ए-मय-ख़ाना
शिकस्त-ए-जाम से हम इंक़लाब ले आए

वो कामयाब-ए-मोहब्बत हैं जो तिरे दर से
ख़ुद अपने आप को ना-कामयाब ले आए

तमाम उम्र जो छाया रहेगा आँखों में
तुम्हारी बज़्म से हम ऐसा ख़्वाब ले आए

यहाँ तो एक भी ग़म-आश्ना नहीं अपना
फ़रिश्ते मुझ को कहाँ बे-नक़ाब ले आए

हयात-ए-इश्क़ में हम तोड़ कर क़ुयूद-ए-वफ़ा
किसी भी तौर सही इंक़लाब ले आए

वही सफ़ीने जो तूफ़ाँ-शनास थे फ़ितरत
सुकूत-ए-शहर में इक इज़्तिराब ले आए