EN اردو
'नदीम' उन की ज़बाँ पर फिर हमारा नाम है शायद | शाही शायरी
nadim unki zaban par phir hamara nam hai shayad

ग़ज़ल

'नदीम' उन की ज़बाँ पर फिर हमारा नाम है शायद

राज कुमार सूरी नदीम

;

'नदीम' उन की ज़बाँ पर फिर हमारा नाम है शायद
हमारी फ़िक्र में फिर गर्दिश-ए-अय्याम है शायद

सर-ए-कू-ए-बुताँ जो एक अम्बोह-ए-हरीफ़ाँ है
फ़राज़-ए-बाम पर अब भी वो जल्वा आम है शायद

मिरे अहबाब भी ख़ुश हैं मिरी बर्बादी-ए-दिल पर
सुलूक-ए-दोस्ताँ लोगो इसी का नाम है शायद

सर-ए-महफ़िल निगाहों का तसादुम देखने वालो
किसी को फिर किसी से आ पड़ा कुछ काम है शायद

अजब अंदाज़ से आई है कुछ अठखेलियाँ करती
शमीम-ए-जाँ-फ़िज़ा के पास कुछ पैग़ाम है शायद

ख़याल आता है अक्सर देख कर रुख़्सार-ओ-गेसू को
न ऐसी सुब्ह है शायद न ऐसी शाम है शायद

नज़र भी अब नहीं उठती हमारी सम्त महफ़िल में
'नदीम' ईसार-ओ-उल्फ़त का यही अंजाम है शायद