नदी किनारे बैठे रहना अच्छा है
या नदी के पार उतरना अच्छा है
दस्तक सी इक दिल के बंद किवाड़ों पर
चुपके चुपके सुनते रहना अच्छा है
यूँही घर में चुप और गुम-सुम रहने से
गलियों गलियों घूमते फिरना अच्छा है
जिन लोगों की याद से आँखें भर आएँ
उन लोगों को याद न करना अच्छा है
साँझ हुए जब आँगन जागने लगते हैं
दिल में याद के दिए जलाना अच्छा है
जी के रोग की जब कोई न बात सुने
दीवारों से बातें करना अच्छा है
जब आँखों में दिल की उदासी रंग भरे
आप ही अपनी हँसी उड़ाना अच्छा है
ग़ज़ल
नदी किनारे बैठे रहना अच्छा है
ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश