नाज़-ए-बेगानगी में क्या कुछ था
हुस्न की सादगी में क्या कुछ था
लाख राहें थीं लाख जल्वे थे
अहद-ए-आवारगी में क्या कुछ था
आँख खुलते ही छुप गई हर शय
आलम-ए-बे-ख़ुदी में क्या कुछ था
याद हैं मरहले मोहब्बत के
हाए इस बेकली में क्या कुछ था
कितने बीते दिनों की याद आई
आज तेरी कमी में क्या कुछ था
कितने मानूस लोग याद आए
सुब्ह की चाँदनी में क्या कुछ था
रात-भर हम न सो सके 'नासिर'
पर्दा-ए-ख़ामुशी में क्या कुछ था
ग़ज़ल
नाज़-ए-बेगानगी में क्या कुछ था
नासिर काज़मी