EN اردو
नासेहा आया नसीहत है सुनाने के लिए | शाही शायरी
naseha aaya nasihat hai sunane ke liye

ग़ज़ल

नासेहा आया नसीहत है सुनाने के लिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

;

नासेहा आया नसीहत है सुनाने के लिए
या कि आया है यहाँ तेरे सताने के लिए

आ के लाशे पे मिरे वो आबदीदा गर हुआ
ये बहाना आँसुओं का है बहाने के लिए

तुम जो कहते हो कि क्या वो ऐसी जल्दी मर गया
क्या हैं बरसों चाहिएँ इक जान जाने के लिए

क्या हुआ गर मौत आई है वो आने के लिए
क्या हुआ गर जाँ गई है वो भी जाने के लिए

है फ़क़त परहेज़ ये कह दो मरीज़-ए-इश्क़ से
पीने को ख़ून-ए-जिगर है ग़म है खाने के लिए

मुँह में ज़ाहिद के भी हैं दो दाँत हाथी की तरह
इक दिखाने के लिए है एक खाने के लिए

कौन है ज़ेर-ए-फ़लक फिरता है जो अपनी ख़ुशी
फिर रहे हैं सब जहाँ में आब-ओ-दाने के लिए

पेट के ग़म ने किया है सब जहाँ को मुंतशिर
बाप से बेटा जुदा है आब-ओ-दाने के लिए

जल्वा बख़्शा वो मुझे तेरे रुख़-ए-पुर-नूर ने
तूर पर मूसा गया था जिस के पाने के लिए

देख कर आया है नासेह क्या जहन्नम का अज़ाब
हैं फ़क़त ये जाहिलों का दिल डराने के लिए

रह गया अपना कलेजा थाम जल्लाद-ए-फ़लक
जब उठाया उस ने ख़ंजर ख़ूँ बहाने के लिए

आब तो देते हो ख़ंजर को मगर ये सोच लो
ख़ून मेरा चाहिए उस को बुझाने के लिए

वा'दा आशिक़ से न हो सच्चा तो झूटा ही सही
चाहिए कुछ तो तसल्ली दिल बढ़ाने के लिए

मुँह न देखा ऐश का तदबीर हम ने लाख की
ग़म घटाने के लिए फ़रहत बढ़ाने के लिए

जब कहा मैं ने कि क्यूँ बातें बनाते हो बहुत
हँस के बोले बातें होती हैं बनाने के लिए

ऐ दिल-ए-नादाँ नहीं दौलत दबाने के लिए
ख़र्च कर उस को वो है खाने खिलाने के लिए

जब कहा मेरा फ़क़त है एक बोसे का सवाल
बोले दौलत हुस्न की क्या है लुटाने के लिए

है बुलाया 'मशरिक़ी' को तुम ने जो पेश-ए-रक़ीब
क्या निकाला था ये नुस्ख़ा दिल दुखाने के लिए