नारवा है किसी की हमराही
राह में जा रहा हूँ तन्हा ही
फिर भी कैसा नफ़ीस धोका है
रंग-ओ-बू है अगरचे धोका ही
दिल तिरी याद में तड़पता है
जैसे बे-आब हो कोई माही
फ़ैज़ साक़ी का आम था हर-चंद
हम को रहना मगर था प्यासा ही
आदमी तो फ़क़ीर ही सा है
ठाट हैं 'शाद' के मगर शाही
ग़ज़ल
नारवा है किसी की हमराही
नरेश कुमार शाद