नाम तेरा भी रहेगा न सितमगर बाक़ी 
जब है फ़िरऔन न चंगेज़ का लश्कर बाक़ी 
अपने चेहरों को सियाही में छुपाने वालो 
नोक-ए-नेज़ा पे है सूरज सा कोई सर बाक़ी 
तेरे विर्से पे हैं ग़ासिब की उक़ाबी नज़रें 
ग़फ़लतों से नहीं रहते ये जवाहर बाक़ी 
इक सदफ़ सत्ह-ए-समंदर पे बहा जाता है 
और साहिल पे नहीं एक शनावर बाक़ी 
एक सफ़ हों तो बनें सीसा पिलाई दीवार 
हों अदू के लिए राहें न कहीं दर बाक़ी 
क़द्र कम होती है तक़्सीम जो होता है अदू 
हासिल-ए-जम्अ में बरकत है बराबर बाक़ी 
जाल फिर लाया है सय्याद फँसाने के लिए 
मिल के उड़ जाएँ परिंदे न रहे डर बाक़ी 
ज़ुल्म से सर को न टकराएँ तो फिर सज्दा करें 
हाँ पता है कि दर होगा न कहीं सर बाक़ी 
हम शहीदों को कभी मुर्दा नहीं कहते 'अनीस' 
रिज़्क़ जन्नत में मिले शान यहाँ पर बाक़ी
        ग़ज़ल
नाम तेरा भी रहेगा न सितमगर बाक़ी
अनीस अंसारी

