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नाम से तेरे जो रौशन मतला-ए-दीवाँ हुआ | शाही शायरी
nam se tere jo raushan matla-e-diwan hua

ग़ज़ल

नाम से तेरे जो रौशन मतला-ए-दीवाँ हुआ

राधे शियाम रस्तोगी अहक़र

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नाम से तेरे जो रौशन मतला-ए-दीवाँ हुआ
हर वरक़ ख़ुर्शेद के मानिंद नूर-अफ़शाँ हुआ

तेरी ही क़ुदरत से पैदा है ज़मीन-ओ-आसमाँ
ख़ाक का पुतला तजल्ली से तिरी इंसाँ हुआ

तेरे अब्र-ए-फ़ैज़ से ताज़ा है बाग़-ए-काएनात
क्या गुल-ए-आलम नसीम-ए-फ़ज़्ल से ख़ंदाँ हुआ

क़द्र रखता है सुलैमाँ से ज़्यादा मोर भी
जो गदा दरवाज़े का तेरे हुआ सुल्ताँ हुआ

याद से तेरी दिल-ए-नाशाद अपना शाद है
ज़िक्र तेरा मेरे दर्द-ए-फ़िक्र का दरमाँ हुआ

सर-बुलंदी में भी मुझ को फ़ख़्र की दौलत मिली
अल्लाह अल्लाह किस क़दर मुझ पर तिरा एहसाँ हुआ

हल्क़ा-ए-साहब-ए-दिलाँ में तेरा 'अहक़र' नाम है
ये समझ ले चाक तेरा नामा-ए-इस्याँ हुआ