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नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं | शाही शायरी
nala juz husn-e-talab ai sitam-ijad nahin

ग़ज़ल

नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं

मिर्ज़ा ग़ालिब

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नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं
है तक़ाज़ा-ए-जफ़ा शिकवा-ए-बेदाद नहीं

इश्क़-ओ-मज़दूरी-ए-इशरत-गह-ए-ख़ुसरव क्या ख़ूब
हम को तस्लीम निको-नामी-ए-फ़रहाद नहीं

कम नहीं वो भी ख़राबी में पे वुसअत मालूम
दश्त में है मुझे वो ऐश कि घर याद नहीं

अहल-ए-बीनश को है तूफ़ान-ए-हवादिस मकतब
लुत्मा-ए-मौज कम अज़ सैली-ए-उस्ताद नहीं

वाए महरूमी-ए-तस्लीम-ओ-बदा हाल-ए-वफ़ा
जानता है कि हमें ताक़त-ए-फ़रयाद नहीं

रंग-ए-तमकीन-ए-गुल-ओ-लाला परेशाँ क्यूँ है
गर चराग़ान-ए-सर-ए-रह-गुज़र-ए-बाद नहीं

सबद-ए-गुल के तले बंद करे है गुलचीं
मुज़्दा ऐ मुर्ग़ कि गुलज़ार में सय्याद नहीं

नफ़ी से करती है इसबात तराविश गोया
दी है जा-ए-दहन उस को दम-ए-ईजाद नहीं

कम नहीं जल्वागरी में तिरे कूचे से बहिश्त
यही नक़्शा है वले इस क़दर आबाद नहीं

करते किस मुँह से हो ग़ुर्बत की शिकायत 'ग़ालिब'
तुम को बे-महरी-ए-यारान-ए-वतन याद नहीं