ना-तवानी में पलक को भी हिलाया न गया
देख के उन को इशारे से बुलाया न गया
सख़्त-तर संग से भी दिल है उन्हों का शायद
नक़्श जिस पर किसी उन्वान बिठाया न गया
गुलशन-ए-ख़ुल्द में हर-चंद कि दिल बहलाया
कूचा-ए-यार मगर दिल से भुलाया न गया
शिकन-ए-ज़ुल्फ़ से दिल साफ़ नज़र आता है
इस अँधेरे में तअ'ज्जुब है छुपाया न गया
देख कर कल वो मिरा हाल-ए-परेशाँ 'आरिफ़'
ऐसा घबराए कि आँखों को चुराया न गया
ग़ज़ल
ना-तवानी में पलक को भी हिलाया न गया
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़