EN اردو
ना-रसाई का चलो जश्न मनाएँ हम लोग | शाही शायरी
na-rasai ka chalo jashn manaen hum log

ग़ज़ल

ना-रसाई का चलो जश्न मनाएँ हम लोग

रफ़ीआ शबनम आबिदी

;

ना-रसाई का चलो जश्न मनाएँ हम लोग
शायद इस तरह से कुछ खोएँ तो पाएँ हम लोग

रेत ही रेत अगर अपना मुक़द्दर ठहरा
क्यूँकि फिर एक घरौंदा ही बनाएँ हम लोग

जिस्म की क़ैद कोई क़ैद नहीं होती है
आओ सब झूटी हदें तोड़ के जाएँ हम लोग

इस बदलते हुए मौसम का भरोसा भी नहीं
गीली मिट्टी पे कोई नक़्श सजाएँ हम लोग

रोक पाएँगे न लम्हात के मौसम हम को
एक दीवार ज़माना तो हवाएँ हम लोग

अपने जज़्बात के पाकीज़ा तहफ़्फ़ुज़ के लिए
कभी मल्बूस कभी गर्म रिदाएँ हम लोग

कोई सूरज न किसी रात के दामन में गिरा
माँगते ही रहे सदियों से दुआएँ हम लोग

चाँद उतरा नहीं अब तक भी ज़मीं पर 'शबनम'
एक मुद्दत हुई देते हैं सदाएँ हम लोग