न वो जज़्बात की लहरें न एहसासात का दरिया
लिए फिरता हूँ आँखों में अजब ख़दशात का दरिया
मचलती शोख़ मौजों को मैं अपने नाम क्यूँ लिक्खूँ
कि आख़िर ख़ुश्क होगा मौसम-ए-बरसात का दरिया
किसे मा'लूम ये कश्ती लगे किस घाट पर जा कर
बहा ले जाए क्या जाने किधर हालात का दरिया
कहाँ इस आँख का जुगनू कि चमके भी तो छुपने को
कहाँ हम बेकसों की बातिनी ज़ुल्मात का दरिया
हवाएँ चुप ख़ला वीराँ फ़ज़ा ग़मगीं सफ़र मुश्किल
रवाँ हद्द-ए-नज़र तक जब्र के लम्हात का दरिया
ज़बाँ की ख़ामुशी तक़रीर को दफ़ना नहीं सकती
नहीं रुकता 'फ़िगार' अलफ़ाज़-ओ-तख़लीक़ात का दरिया
ग़ज़ल
न वो जज़्बात की लहरें न एहसासात का दरिया
अमर सिंह फ़िगार