न वो दर्द है न वो रंज है न हुजूम ज़ुल्मत-ए-शाम है
मिरे ख़ुश्क होंटों पे यक-ब-यक जो चमक उठा तिरा नाम है
कभी कहकशाँ से गुज़र गए कभी बज़्म-ए-गुल में उतर गए
जो समझ गए तो ठहर गए तिरा दर ही अपना मक़ाम है
मिरे ग़म हैं कितने अजीब से वो मिला कहाँ है नसीब से
यहाँ क़ुर्ब की मुझे आरज़ू वहाँ दूर ही से सलाम है
जो छुपा के प्यासों से मैं पियूँ जो किसी के हाथ से छीन लूँ
तो वो प्यास मुझ से गुनाह है तो वो जाम मुझ पे हराम है
सुनो सर-फिरो मिरे हासिदो मिरी ज़िंदगी का है राज़ क्या
मिरा सर कहीं भी झुके तो क्यूँ मिरा दिल किसी का ग़ुलाम है
हमें थी ख़बर ये तो पेशतर कि है आस्तीं में छुपी छुरी
मिले फिर गले यही सोच कर चलो लब पे इस के तो राम है
मैं वही हूँ 'ख़ालिद'-ना-रसा मुझे जानता है ये मय-कदा
मिरा जाम जाम में अक्स है मिरा बूँद बूँद में नाम है

ग़ज़ल
न वो दर्द है न वो रंज है न हुजूम ज़ुल्मत-ए-शाम है
ख़ालिद फ़तेहपुरी