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न उस के नाम से वाक़िफ़ न उस की जा मा'लूम | शाही शायरी
na uske nam se waqif na uski ja malum

ग़ज़ल

न उस के नाम से वाक़िफ़ न उस की जा मा'लूम

नज़ीर अकबराबादी

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न उस के नाम से वाक़िफ़ न उस की जा मा'लूम
मिलेगा देखिए क्यूँकर वो बुत ख़ुदा मा'लूम

जवाब देखिए दिल ले के ये कहा चुपके
न हो ये और किसी को तिरे सिवा मा'लूम

लगा के ज़ख़्म-ए-जिगर पर जो फिर नमक छिड़का
तो इस में हम को हुआ और ही मज़ा मा'लूम

बदन परी का तिरे तन से गो कि गोरा है
वले वो चाहे कि ऐसा हो गुदगुदा मा'लूम

हम उस पे मरते हैं मुद्दत से और वो कहता है
क़सम ख़ुदा की हमें तो ये अब हुआ मा'लूम

किया था अहद न वा'दा न क़ौल ने इक़रार
जो आ गया वो मिरे पास शब को ना-मालूम

जो मुझ से हँस के कहा जिस लिए हम आए हैं
'नज़ीर' तुम ने भी सच कहियो क्या किया मा'लूम

कहा ये मैं ने मुझे क्या ख़बर तुम्हीं जानो
किसी के दिल की भला जी किसी को क्या मा'लूम